Skip to main content

तुम्हारे नाम एक खत

एक खत तुम्हारे नाम मैं

रोज लिखा करती हूं 

कभी गीत, कभी गजल 

कभी नज्म कहा करती हूं 

पर पता तुम्हारे नाम का 

लिखना हमारे हक में नहीं 

सो लिफाफा बंद कर, रख दिया 

यही अलमारी में कहीं 

आओ कभी गर ढूंढने 

अलमारी और अपने ख़त को 

सो लिख पहेली उड़ा दिए हैं 

हमने कई कबूतर को।

Nidhishree

#Nidhishreejournal #nidhishreepoem #nidhishreepoetry #hindipoem #Nidhishree


Comments

Popular posts from this blog

Rakshabandhan poem ( Bhai - Bahan ka pyar )

Written by :- NidhiShree हाथों की कलाई पर वो जो एक धागा बांधा है , वो धागा नहीं मैंने अपना प्रेम बांधा है । तुम्हारी सदैव रक्षा करे ये डोर , मैंने ईश्वर से ये वचन मांगा है । हाथों की कलाई पर वो जो एक धागा बांधा है , वो धागा नहीं मैंने अपना प्रेम बांधा है । हर साल की तरह तुमने , मुझे इस साल भी तोहफा नहीं दिया । पर मैं खुश हूं , ईश्वर ने मुझे तुमसे नवाजा है । हाथों की कलाई पर वो जो एक धागा बांधा है , वो धागा नहीं मैंने अपना प्रेम बांधा है । आज सुबह भी थोड़ी नोंक झोंक हो गई , " तुम क्यो नही सुनते बात मेरी ,   मैं क्यों नहीं मानती बात तेरी " ने ,  फिर से वो बचपन खिला डाला है । हाथों की कलाई पर वो जो एक धागा बांधा है , वो धागा नहीं मैंने अपना प्रेम बांधा है । बचपन से आजतक जाने कितनी लड़ाईयां की , नोंक झोंक में ही सारी उमर बीत गई , फिर भी ये प्यार कहां कम हो पाया है । हर मुश्किल में मेरे तु ही साथ आया है ।। हाथों की कलाई पर वो जो एक धागा बांधा है , वो धागा नहीं मैंने अपना प्रेम बांधा है ।       - श्री की कलम 

Poem on Subhash Chandra Bose

SUBHASH CHANDRA BOSE सुभाष चन्द्र बोस   https://youtu.be/gzpyRQFf7I0 युटुब पर सुनें 👆 इतिहास वही रचता है , जो तूफानों से लड़ता है । हरा दे जो मौत को भी ,  वह बोस हर किसी में बसता है । माता के थे लाड़ले , पिता का सपना ले हुए बड़े । करने पूरा उन सपनों को , इंग्लैंड की ओर चल पड़े । नंद ,घोष की सोच जहां समाई थी , गुलामी उन्हें कहा भायी थी । फिर तोड़ के सारे सपनों को, जय हिंद की आवाज लगाई थी । थाम के हाथ स्वराज का , शुरू कर दी नई लड़ाई थी । आजादी के इस युद्ध में , फिर एक नई क्रांति आई थी । छिड़ी एक नई बगावत , कोलकाता की वह धरती थी । आया था साइमन कमीशन  पर सामने नेता के , उसकी भी कहा चलती थी । दिखा कर उसको काला झंडा , पूरा बंगाल बदल डाला । नेताजी ने सन सत्ताइस में , एक नया इतिहास लिख डाला । तेईस जनवरी सन् सत्तानबे , फुले ना समाया था । देकर जन्म वीर पुत्र को , उस दिन काल भी हरसाया था । काटने मैया के जंजीरों का जाल , स्वयं चंद्र धरा पर आया था । आजादी के उस युद्ध में , एक नया योद्धा आया था। वक्त था बदल रहा , भारत में नई गर्मी आई थी । हिंद फौज का गठन हुआ , अब होनी नई लड़ाई थी । हॉ...

Khamoshi

जब हम बार बार अपने मन की बात किसी को समझाते हैं , फिर भी सामने वाला नहीं समझता है और ना समझने कि कोशिश करता हैं , तो आखिर में हम हार जाते है , और खामोश हो जाते हैं । उन्ही जज्बातों के खामोश हो जाने पर लिखी गई यह कविता " खामोशी  "। समझ सको गर मौन मेरी तुम , और उतर सको गर दिल में । सुन सको गर शोर वहां तुम , और कर सको कुछ निर्णय । फिर भी मैं निशब्द रहना चाहती हूं । देखो मैं अब कुछ नहीं कहना चाहती हूं ।। अगर हो एहसास तुम्हें , मेरे रूठने का । गर पूछनी हो कोई बात तुम्हें , मेरे इस फैसले का । और मना सको गर किसी जतन से , फिर भी मैं निशब्द रहना चाहती हूं । देखो मैं अब कुछ नहीं कहना चाहती हूं ।। अगर याद करो तुम , मेरी उन बातों को । बौठो पास तुम , और खोलो सारी गांठों को । और सुनना चाहो उन जज्बातों को , फिर भी मैं निशब्द रहना चाहती हूं । देखो मैं अब कुछ नहीं कहना चाहती हूं ।।       - श्री की कलम आशा करती हूं आप सभी को यह कविता पसंद आई होगी । 🙏 #khamoshi shayari rekhta #khamoshi poem rekhta