Skip to main content

तुम्हारे नाम एक खत

एक खत तुम्हारे नाम मैं

रोज लिखा करती हूं 

कभी गीत, कभी गजल 

कभी नज्म कहा करती हूं 

पर पता तुम्हारे नाम का 

लिखना हमारे हक में नहीं 

सो लिफाफा बंद कर, रख दिया 

यही अलमारी में कहीं 

आओ कभी गर ढूंढने 

अलमारी और अपने ख़त को 

सो लिख पहेली उड़ा दिए हैं 

हमने कई कबूतर को।

Nidhishree

#Nidhishreejournal #nidhishreepoem #nidhishreepoetry #hindipoem #Nidhishree


Comments

Popular posts from this blog

किरदार का चुनाव

Written by - NidhiShree वो अहिल्या , पवित्र है ,  तुम गौतम से मूर्ख मत बनो । आएंगे उसे भगवान तारने , पछताओगे , ऐसा क्रोध मत करो । वो स्त्री है , उसे पता है अपनी मर्यादा , किसी और की सजा उसे मत दो । अगर हो विद्वान तो , सच्चाई परखना सीख लो ।। वो स्त्री है , उसे पता है अपनी मर्यादा , तुम दुर्योधन मत बनो । वो ‌ सखी है , कृष्ण की , तुम उसे अपमानित मत करो । ऐसा मोह ना हो प्रेम का , के धृत कि आंखें पा लो तुम । वो शक्ति भी किस काम की , अपमान देख चुप रह जाओ तुम । के खोल दिए , उसने केस अपने  तो फिर महाभारत नई होगी । तुम महाभारत के कौरव मत बनो ।। अगर दे ना पाओ  साथ तो , चुप रह राम सा प्रेम करो । अगर दे ना पाओ  साथ तो , त्याग फिर प्रेम का हो । अगर दे ना पाओ  साथ तो , वीरहन घड़ी की देख लो । अगर दे ना पाओ  साथ तो , उसे धरती में जाते देख लो । वो सीता , सत्य है । तुम लांछन उसे मत दो । तुम रामायण के धोबी मत बनो ।। काटा है तुमने नाक भी , गलत कहां मैं कहती हूं । बस ध्यान हो इस बात का, वो तलवार भी लक्ष्मण की हो । जो कर सके ये फैसला , धर्म की जो कसौटी हो । स्वयं की ही जीत हो , तुम वो रावण मत बनो । समझ ना ज

Rakshabandhan poem ( Bhai - Bahan ka pyar )

Written by :- NidhiShree हाथों की कलाई पर वो जो एक धागा बांधा है , वो धागा नहीं मैंने अपना प्रेम बांधा है । तुम्हारी सदैव रक्षा करे ये डोर , मैंने ईश्वर से ये वचन मांगा है । हाथों की कलाई पर वो जो एक धागा बांधा है , वो धागा नहीं मैंने अपना प्रेम बांधा है । हर साल की तरह तुमने , मुझे इस साल भी तोहफा नहीं दिया । पर मैं खुश हूं , ईश्वर ने मुझे तुमसे नवाजा है । हाथों की कलाई पर वो जो एक धागा बांधा है , वो धागा नहीं मैंने अपना प्रेम बांधा है । आज सुबह भी थोड़ी नोंक झोंक हो गई , " तुम क्यो नही सुनते बात मेरी ,   मैं क्यों नहीं मानती बात तेरी " ने ,  फिर से वो बचपन खिला डाला है । हाथों की कलाई पर वो जो एक धागा बांधा है , वो धागा नहीं मैंने अपना प्रेम बांधा है । बचपन से आजतक जाने कितनी लड़ाईयां की , नोंक झोंक में ही सारी उमर बीत गई , फिर भी ये प्यार कहां कम हो पाया है । हर मुश्किल में मेरे तु ही साथ आया है ।। हाथों की कलाई पर वो जो एक धागा बांधा है , वो धागा नहीं मैंने अपना प्रेम बांधा है ।       - श्री की कलम