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तुम्हारे नाम एक खत

एक खत तुम्हारे नाम मैं

रोज लिखा करती हूं 

कभी गीत, कभी गजल 

कभी नज्म कहा करती हूं 

पर पता तुम्हारे नाम का 

लिखना हमारे हक में नहीं 

सो लिफाफा बंद कर, रख दिया 

यही अलमारी में कहीं 

आओ कभी गर ढूंढने 

अलमारी और अपने ख़त को 

सो लिख पहेली उड़ा दिए हैं 

हमने कई कबूतर को।

Nidhishree

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