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Rakshabandhan poem ( Bhai - Bahan ka pyar )

Written by :- NidhiShree



हाथों की कलाई पर वो जो एक धागा बांधा है ,
वो धागा नहीं मैंने अपना प्रेम बांधा है ।
तुम्हारी सदैव रक्षा करे ये डोर ,
मैंने ईश्वर से ये वचन मांगा है ।

हाथों की कलाई पर वो जो एक धागा बांधा है ,
वो धागा नहीं मैंने अपना प्रेम बांधा है ।

हर साल की तरह तुमने ,
मुझे इस साल भी तोहफा नहीं दिया ।
पर मैं खुश हूं ,
ईश्वर ने मुझे तुमसे नवाजा है ।


हाथों की कलाई पर वो जो एक धागा बांधा है ,
वो धागा नहीं मैंने अपना प्रेम बांधा है ।

आज सुबह भी थोड़ी नोंक झोंक हो गई ,
" तुम क्यो नही सुनते बात मेरी , 
 मैं क्यों नहीं मानती बात तेरी " ने , 
फिर से वो बचपन खिला डाला है ।

हाथों की कलाई पर वो जो एक धागा बांधा है ,
वो धागा नहीं मैंने अपना प्रेम बांधा है ।

बचपन से आजतक जाने कितनी लड़ाईयां की ,
नोंक झोंक में ही सारी उमर बीत गई ,
फिर भी ये प्यार कहां कम हो पाया है ।
हर मुश्किल में मेरे तु ही साथ आया है ।।

हाथों की कलाई पर वो जो एक धागा बांधा है ,
वो धागा नहीं मैंने अपना प्रेम बांधा है ।


      - श्री की कलम 





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