Skip to main content

Khamoshi


जब हम बार बार अपने मन की बात किसी को समझाते हैं , फिर भी सामने वाला नहीं समझता है और ना समझने कि कोशिश करता हैं , तो आखिर में हम हार जाते है , और खामोश हो जाते हैं । उन्ही जज्बातों के खामोश हो जाने पर लिखी गई यह कविता "खामोशी "।

समझ सको गर मौन मेरी तुम ,
और उतर सको गर दिल में ।
सुन सको गर शोर वहां तुम ,
और कर सको कुछ निर्णय ।
फिर भी मैं निशब्द रहना चाहती हूं ।
देखो मैं अब कुछ नहीं कहना चाहती हूं ।।

अगर हो एहसास तुम्हें ,
मेरे रूठने का ।
गर पूछनी हो कोई बात तुम्हें ,
मेरे इस फैसले का ।
और मना सको गर किसी जतन से ,
फिर भी मैं निशब्द रहना चाहती हूं ।
देखो मैं अब कुछ नहीं कहना चाहती हूं ।।

अगर याद करो तुम ,
मेरी उन बातों को ।
बौठो पास तुम ,
और खोलो सारी गांठों को ।
और सुनना चाहो उन जज्बातों को ,
फिर भी मैं निशब्द रहना चाहती हूं ।
देखो मैं अब कुछ नहीं कहना चाहती हूं ।।

      - श्री की कलम

आशा करती हूं आप सभी को यह कविता पसंद आई होगी ।
🙏












#khamoshi shayari rekhta #khamoshi poem rekhta

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

Rakshabandhan poem ( Bhai - Bahan ka pyar )

Written by :- NidhiShree हाथों की कलाई पर वो जो एक धागा बांधा है , वो धागा नहीं मैंने अपना प्रेम बांधा है । तुम्हारी सदैव रक्षा करे ये डोर , मैंने ईश्वर से ये वचन मांगा है । हाथों की कलाई पर वो जो एक धागा बांधा है , वो धागा नहीं मैंने अपना प्रेम बांधा है । हर साल की तरह तुमने , मुझे इस साल भी तोहफा नहीं दिया । पर मैं खुश हूं , ईश्वर ने मुझे तुमसे नवाजा है । हाथों की कलाई पर वो जो एक धागा बांधा है , वो धागा नहीं मैंने अपना प्रेम बांधा है । आज सुबह भी थोड़ी नोंक झोंक हो गई , " तुम क्यो नही सुनते बात मेरी ,   मैं क्यों नहीं मानती बात तेरी " ने ,  फिर से वो बचपन खिला डाला है । हाथों की कलाई पर वो जो एक धागा बांधा है , वो धागा नहीं मैंने अपना प्रेम बांधा है । बचपन से आजतक जाने कितनी लड़ाईयां की , नोंक झोंक में ही सारी उमर बीत गई , फिर भी ये प्यार कहां कम हो पाया है । हर मुश्किल में मेरे तु ही साथ आया है ।। हाथों की कलाई पर वो जो एक धागा बांधा है , वो धागा नहीं मैंने अपना प्रेम बांधा है ।       - श्री की कलम 

किरदार का चुनाव

Written by - NidhiShree वो अहिल्या , पवित्र है ,  तुम गौतम से मूर्ख मत बनो । आएंगे उसे भगवान तारने , पछताओगे , ऐसा क्रोध मत करो । वो स्त्री है , उसे पता है अपनी मर्यादा , किसी और की सजा उसे मत दो । अगर हो विद्वान तो , सच्चाई परखना सीख लो ।। वो स्त्री है , उसे पता है अपनी मर्यादा , तुम दुर्योधन मत बनो । वो ‌ सखी है , कृष्ण की , तुम उसे अपमानित मत करो । ऐसा मोह ना हो प्रेम का , के धृत कि आंखें पा लो तुम । वो शक्ति भी किस काम की , अपमान देख चुप रह जाओ तुम । के खोल दिए , उसने केस अपने  तो फिर महाभारत नई होगी । तुम महाभारत के कौरव मत बनो ।। अगर दे ना पाओ  साथ तो , चुप रह राम सा प्रेम करो । अगर दे ना पाओ  साथ तो , त्याग फिर प्रेम का हो । अगर दे ना पाओ  साथ तो , वीरहन घड़ी की देख लो । अगर दे ना पाओ  साथ तो , उसे धरती में जाते देख लो । वो सीता , सत्य है । तुम लांछन उसे मत दो । तुम रामायण के धोबी मत बनो ।। काटा है तुमने नाक भी , गलत कहां मैं कहती हूं । बस ध्यान हो इस बात का, वो तलवार भी लक्ष्मण की हो । जो कर सके ये फैसला , धर्म की जो कसौटी हो । स्वयं की ही जीत हो , ...

Poem on Subhash Chandra Bose

SUBHASH CHANDRA BOSE सुभाष चन्द्र बोस   https://youtu.be/gzpyRQFf7I0 युटुब पर सुनें 👆 इतिहास वही रचता है , जो तूफानों से लड़ता है । हरा दे जो मौत को भी ,  वह बोस हर किसी में बसता है । माता के थे लाड़ले , पिता का सपना ले हुए बड़े । करने पूरा उन सपनों को , इंग्लैंड की ओर चल पड़े । नंद ,घोष की सोच जहां समाई थी , गुलामी उन्हें कहा भायी थी । फिर तोड़ के सारे सपनों को, जय हिंद की आवाज लगाई थी । थाम के हाथ स्वराज का , शुरू कर दी नई लड़ाई थी । आजादी के इस युद्ध में , फिर एक नई क्रांति आई थी । छिड़ी एक नई बगावत , कोलकाता की वह धरती थी । आया था साइमन कमीशन  पर सामने नेता के , उसकी भी कहा चलती थी । दिखा कर उसको काला झंडा , पूरा बंगाल बदल डाला । नेताजी ने सन सत्ताइस में , एक नया इतिहास लिख डाला । तेईस जनवरी सन् सत्तानबे , फुले ना समाया था । देकर जन्म वीर पुत्र को , उस दिन काल भी हरसाया था । काटने मैया के जंजीरों का जाल , स्वयं चंद्र धरा पर आया था । आजादी के उस युद्ध में , एक नया योद्धा आया था। वक्त था बदल रहा , भारत में नई गर्मी आई थी । हिंद फौज का गठन हुआ , अब होनी नई लड़ाई थी । हॉ...